सॉफ्टवेयर Software
सॉफ्टवेयर
सॉफ्टवेयर Computer का वह
Part होता है जिसको हम केवल देख सकते हैं और उस पर कार्य कर सकते हैं, Software का निर्माण
Computer पर कार्य करने को Simple बनाने के लिये किया जाता है, आजकल काम के हिसाब से
Software का निर्माण किया जाता है, जैसा काम वैसा Software । Software को बडी बडी कंपनियों में यूजर की जरूरत को ध्यान में रखकर
Software programmers द्वारा तैयार कराती हैं, इसमें से कुछ free में उपलब्ध होते है तथा कुछ के लिये चार्ज देना पडता है। जैसे आपको फोटो से सम्बन्धित कार्य करनाहो तो उसके लिये फोटोशॉप या कोई वीडियो देखना हो तो उसके लिये मीडिया प्लेयर का यूज करते है।
सॉफ्टवेयर
के प्रकार - Types of
Software or Computer
कंप्यूटर सॉफ्टवेयर तीन
प्रकार के होते
हैं।
·
सिस्टम सॉफ्टवेयर (system software)
·
एप्लिकेशन सॉफ्टवेयर (Application software)
·
यूटिलिटी सॉफ्टवेयर (Utility software)
सिस्टम सॉफ्टवेयर (system
software)
सिस्टम सॉफ्टवेयर (System Software) ऐसे सॉफ्टवेयर होते
हैं जो आपके
कंप्यूटर के
हार्डवेयर को Manage और Control करते हैं और
इन्हीं की
वजह से एप्लीकेशन सॉफ्टवेयर (Application Software) कंप्यूटर में चल
पाते हैं या
आप उस पर
काम कर पाते
हैं सिस्टम सॉफ्टवेयर (System Software) का सबसे
सरल उदाहरण के
आपका ऑपरेटिंग सिस्टम यानी आपकी
विंडोज जो भी
आप इस्तेमाल
कर रहे होगें,
संक्षेप में सिस्टम सॉफ्टवेयर प्रोग्रामों का
एक समूह है,
सिस्टम सॉफ्टवेयर (System Software) के और
भी कई उदाहरण
हैं -
ऑपरेटिंग
सिस्टम क्या है ?
सही शब्दों में ऑपरेटिंग सिस्टम के बिना
कंप्यूटर टिन
के टिब्बे
से ज्यादा
कुछ भी नहीं
है, ऑपरेटिंग सिस्टम ही वह
जरिया है जिसकी
सहायता से हम
अपनी बात कंप्यूटर हार्डवेयर तक
पहुचा पाते हैं
या हार्डवेयर को
कमांड दे पाते
हैं। ऑपरेटिंग सिस्टम हार्डवेयर और
हमारे यानि यूजर्स
के बीच एक
पुल का काम
करता है। ऑपरेटिंग सिस्टम की बदोलत
ही आप की-बोर्ड कोई लैटर
टाइप कर, प्रिंटर से
उसका प्रिंट निकाल
सकते हैं। यानि
जितना बढिया अॉपरेटिंग सिस्टम आप टेंशन
उतनी ही कम।
ऑपरेटिंग सिस्टम के पास
यूजर्स, हार्डवेयर, प्रोग्राम यानि सॉफ्टवेयर का पूरा हिसाब-किताब रहता है। यानि ऑप इससे वही काम कर सकते हैं जिसकी सुविधा इसमें दी गयी हो इससे अन्य काम लेने के लिये अापको आपरेटिंग सिस्टम में अपनी सुविधानुसार प्रोग्राम यानि सॉफ्टवेयर इंस्टॉल करने होते
हैं। जैसे लैटर
टाइपिंग एवं ऑफिस संबन्धी कार्यो के
लिये एमएस ऑफिस
या इंटरनेट यूज
करने के लिये
ब्राउजर, इसके अलावा वीडियो
और ऑडिया प्ले करने के
लिये अॉडियो और
वीडियो प्लेयर।
असेम्बलर किसे
कहते है - What is
Assembler in Hindi
कंप्यूटर असेम्बली भाषा (Assembly Language) में
लिखे प्रोग्राम को
नहीं समझता है
कम्प्यूटर मात्र बाइनरी संकेत
अर्थात 0 और 1 यानि
मशीनी भाषा को
ही समझता है
इसलिये असेम्बली भाषा
(Assembly Language) में
लिखे प्राग्राम में
लिखे प्रोग्राम को
मशीनी भाषा ( Machine language ) में Translate किया जाता
है और इस
काम करता है प्रोग्रामिंग भाषा अनुवादक ( Programming Language Translator ) अब
जो भाषा अनुवादक ( Language Translator ) असेम्बली भाषा
(Assembly Language) को
मशीनी भाषा ( Machine language ) में Translate करतेे हैं
वह असेम्बलर
(Assembler) कहलाते हैं
असल में
असेम्बलर (Assembler) कंप्यूटर का वह प्रोग्राम होता
है जो असेम्बली भाषा
(Assembly language) लिखे
गये कोड जैसे नेमोनिक कोड
(Mnemonic code ) को मशीनी
भाषा में यानि
बायनरी कोड में
बदल देता है
और कंप्यूटर
जो बायनरी के
बाइनरी के सिद्धांत पर
चलता है और
यह 0 और 1 की
भाषा ही समझता
है
कम्पाइलर किसे
कहते है - What is
Compiler in Hindi
कंप्यूटर प्रोग्रामिंग के
लिए दो तरह
की भाषाएँ होती
है - निम्न स्तरीय
प्रोग्रामिंग भाषा ( Low Level Programming language). एक विशेष मशीन
के लिए सीधे
मेल खाती है,
उच्च स्तरीय प्रोग्रामिंग भाषा
(High Level Programming language). ये भाषाएँ
मशीन से स्वतंत्र होती
है और किसी भी
प्रकार के कंप्यूटर पर
कार्य कर सकती
है लेकिन जैसा
कि आप जानते
हैं कंप्यूटर
केवल मशीनी भाषा को
समझता है और
मशीनी भाषा में
प्रोग्रामिंग करना संभव नहीं
है इसलिये प्रोग्रामिंग करने
में लिये पहले असेम्बली भाषा का
निर्माण किया गया जो
कि एक निम्न
स्तरीय प्रोग्रामिंग भाषा
( Low Level Programming language) है इसे
मशीनी भाषा में
बदलने के लिये
या अनुवाद करने के
लिये एक प्रोग्राम बनाया
गया जिसे असेम्बलर कहा
जाता है
उसी प्रकार
उच्च स्तरीय प्रोग्रामिंग भाषा
(High Level Programming language) जैसे बेसिक,
सी, सी++, जावा
आदि को भी मशीनी भाषा में अनुवाद करने की जरूरत
होती है ताकि
कंंम्यूटर उसे
समझ सके कम्पाइलर (compiler) वो प्रोग्राम होता
है जो किसी
उच्च स्तरीय प्रोग्रामिंग भाषा
(High Level Programming language) में लिखे
प्रोग्राम को किसी मशीनी
भाषा में बदल
देता है।
उच्च स्तरीय
कंप्यूटर भाषाएँ जैसे सी++,
जावा में लिखे
प्रोग्राम को सोर्स कोड
कहा जाता है,
कम्पाइलर इन सोर्स कोड
को ऑब्जेक्ट कोड
में बदलता है
ऑब्जेक्ट कोड बाइनरी कोड
होते हैं जिन्हें कंप्यूटर
समझ सकता है
या कहेंं तो
कम्पाइलर (compiler) उच्च स्तरीय प्रोग्रामिंग भाषा
(High Level Programming language) को निम्न
स्तरीय प्रोग्रामिंग भाषा
( Low Level Programming language) में बदलने
का काम करता
है
इंटरप्रेटर क्या
है - What is Interpreter in Hindi
इंटरप्रेटर ( Interpreter ) भी कम्पाइलर
(Compiler) की तरह उच्च स्तरीय
भाषा काे मशीनी
भाषा में ट्रांसलेट करने
का काम करता
है, उच्च स्तरीय
कंप्यूटर भाषाएँ जैसे सी++,
जावा में लिखे
प्रोग्राम को सोर्स कोड
कहा जाता है
इंटरप्रेटर ( Interpreter
) सोर्स कोड की
पहली लाइन का
अनुवाद करता है
और यदि पहली
लाइन में कोई
गलती पाता है
तो उसे दर्शाता है यानि एरर देता
है और जब
तक वह लाइन
पूरी तरह से
संशोधित नहीं हो जाती
है यानि ठीक
नहीं हो जाती
है जब तक
आगे नहीं बढता
है जब पहली
लाइन पूरी तरह
से संशोधित हो
जाती है तब
दूसरी लाइन पर
आगे बढता है
तो इस तरह
से इंटरप्रेटर ( Interpreter ) लाइन बाई
लाइन किसी प्रोग्राम को मशीनी भाषा में
अनुवाद करता है
यह हर
प्रोग्राम को इस तरह
से अनुवाद करता
है, इस तरह
से अनुवाद करने
में इंटरप्रेटर ( Interpreter) कम्पाइलर
(Compiler) से अधिक
समय लेता है
यह अपने सोर्स कोड को पूरी तरह से मशीनी कोड में नहीं बदलता है इसलिये हर बाद अनुवाद करते समय इसे सोर्स कोड की जरूरत होती है
एप्लिकेशन सॉफ्टवेयर
(Application software)
एप्लिकेशन सॉफ्टवेयर (Application software) ऐसे प्रोग्रामों को
कहा जाता है,
जो हमारे कंप्यूटर पर
आधारित मुख्य कामों
को करने के
लिए लिखे जाते
हैं । आवश्यकतानुसार भिन्न-भिन्न उपयोगों के
लिए भिन्न-भिन्न
सॉफ्टवेयर होते हैं Software को बडी
बडी कंपनियों में
यूजर की जरूरत
को ध्यान
में रखकर Software programmers द्वारा तैयार
कराती हैं, इसमें
से कुछ free में
उपलब्ध होते
है तथा कुछ
के लिये चार्ज
देना पडता है।
जैसे आपको फोटो
से सम्बन्धित
कार्य करना हो
तो उसके लिये
फोटोशॉप या कोई वीडियो
देखना हो तो
उसके लिये मीडिया
प्लेयर का
यूज करते है।
एप्लिकेशन सॉफ्टवेयर (Application
software) के
कई उदाहरण हैं
–
यूटीलिटी
सॉफ्टवेयर (Utility Software)
यूटिलिटी सॉफ्टवेयर (Utility software) का काम
कंप्यूटर के ऑपरेटिंग सिस्टम (Operating System) की
सर्विस/ रिपेयर करने
का काम होता
है साथ में
यह ऑपरेटिंग सिस्टम (Operating System) केे
माध्यम से
यूटिलिटी सॉफ्टवेयर (Utility
software) कुछ
हार्डवेयर की सर्विस करने
का काम भी
करते हैं जिससे
उनकी कार्यक्षमता और
गति को बढाया
जा सके, इसमें
से बहुत कुछ
यूटिलिटी सॉफ्टवेयर (Utility
software) ऑपरेंटिंग सिस्टम के साथ
आते है और
कुछ को अलग
से लेना पडता
है
1.
एंटीवायरस
2.
डिस्क
डिफ्रेगमेंटर
हार्डवेयर
हार्डवेयर हार्डवेयर
Computer का Machinery भाग होता है जैसे
LCD, की-बोर्ड, माउस, सी0पी0यू0, यू0पी0एस0 आदि जिनको छूकर देखा जा सकता है। इन Machinery Part के मिलकर
computer का बाहरी भाग तैयार होता है तथा Computer इन्ही हार्डवेयर भागों से
Computer की क्षमता का निर्धारण किया जाता है आजकल कुछ
Software को Computer में चलाने के लिये निर्धारित
Hardware की आवश्यकता होती है। यदि Software के अनुसार
Computer में हार्डवेयर नहीं है तो
Software को Computer में चलाया नहीं जा सकता है –
कंप्यूटर को ठीक प्रकार से कार्य करने के लिये सॉफ्टवेयर और हार्डवेयर दोनों
की अावश्यकता होती है। अगर सीधी भाषा में कहा जाये तो यह दोनों एक दूसरे के पूरक हैं। बिना हार्डवेयर सॉफ्टवेयर बेकार
है और बिना सॉफ्टवेयर हार्डवेयर बेकार
है। मतलब कंप्यूटर सॉफ्टवेयर से
हार्डवेयर कमांड दी जाती है किसी हार्डवेयर को कैसे कार्य करना है उसकी जानकारी सॉफ्टवेयर के अन्दर पहले से ही डाली गयी होती है। कंप्यूटर के सीपीयू से कई प्रकार के हार्डवेयर जुडे रहते हैं, इन सब के बीच तालमेल बनाकर कंप्यूटर को ठीक प्रकार से चलाने का काम करता है सिस्टम सॉफ्टवेयर यानि ऑपरेटिंग सिस्टम।
कंप्यूटर
की
कार्य
प्रणाली
कंप्यूटर के कार्यप्रणाली की प्रक्रिया एक चरणबद्ध तरीके से होती है –
इनपुट
(Input) ----- प्रोसेसिंग (Processing) ----- आउटपुट
(Output)
1.
इनपुट के लिये अाप की-बोर्ड, माउस इत्यादि इनपुट डिवाइस का प्रयोग करते हैं साथ ही कंप्यूटर को सॉफ्टवेयर के
माध्यम से कंमाड या निर्देश देते हैं या डाटा एंटर करते हैं।
2.
यह इस प्रक्रिया का दूसरा भाग है इसमें अापके द्वारा दी गयी कंमाड या डाटा को प्रोसेसर द्वारा सॉफ्टवेयर में
उपलब्ध जानकारी और निर्देशों के अनुसार प्रोसेस कराया जाता है।
3.
तीसरा अौर अंतिम भाग आउटपुट इसमें आपके द्वारा दी गयी कंमाड के अाधार पर प्रोसेस की गयी जानकारी का आउटपुट कंप्यूटर द्वारा आपको दिया जाता है जो आपको आउटपुट डिवाइस द्वारा प्राप्त हो जाता है।
Data
शब्द आपने
हजारों बार सुना
होगा, इसका Use कई
जगह किया जाता
है, आजतक कल
तो कई Jobs में
भी Data Entry Operator की Post भी होता
है, तो क्या होता है
यह Data यह प्रश्न सभी दिमाग
में कभी तो
आया होगा तो
आईये जानने की
कोशिश करते है
-
What
is a Data and database ?
Data
असल में किसी
भी सामग्री (Material)/आॅकडों को
कह सकते हैं,
जिसका Use किसी सूचना
को तैयार करने
में किया जा
सके, यह आकडें
किसी भी रूप
में हो सकते
हैं, जैसे Photo, text, Statistics Group (सांख्यिकी समूह) आदि जिसने
Use से
आप किसी नतीजे
पर पहुॅच सकें।
For
example - अगर
हमें किसी शहर
के Educated unemployed लोगों की Information तैयार करनी
हो तो हमें
निम्न आंकडों
अर्थात Data को इकठ्ठा
करना होगा,
१- नाम
, २- पिता का नाम,
३- पता, ४- उम्र, ५- शैक्षिक योग्यता
जब पूरे
श्ाहर को
Data इकठ्ठा
हो जायेगा तो
उससे यह Information बडी आसानी
से तैयार हो
जायेगी। अब आप समझ
ही गये होंगें
कि क्या
होता है यह
Data ......
[Parts of CPU and
their Functions] - सीपीयू के अन्दरूनी भाग
हार्ड डिस्क:-
यह वह भाग है जिसमें
कम्प्यूटर
के
सभी
प्रोग्राम
और
डाटा
सुरक्षित
रहते
है।
हार्ड
डिस्क
की
मेमोरी
स्थायी
होती
है,
इसीलिए
कम्प्यूटर
को
बंद
करने
पर
भी
इसमें
सुरक्षित
प्रोग्राम
और
डाटा
समाप्त नहीं होता है। आज से 10 वर्ष पहले हार्डडिस्क की स्टोरेज
क्षमता
गीगाबाइट/जी0बी0 मेगाबाइट
या
एम0बी0 तक सीमित
रहती
थी
किन्तु आजकल हार्ड
डिस्क
की
स्टोरेज
क्षमता
को
टेराबाइट
या
टीबी
में
मापा
जाता
है
किन्तु
आजकल
500 जी0बी0 तथा 1 TB या 1000 GB के क्षमतायुक्त पीसी लोकप्रिय हो गए है। हार्ड डिस्क की क्षमता जितनी अधिक होगी उतना ही ज्यादा डाटा स्टोर किया जा सकता है।
मदर बोर्ड :-
मदर बोर्ड
फाइबर
ग्लास
का
बना
एक
समतल
प्लैटफार्म
होता
है,
जो
कम्प्यूटर के सभी हार्डवेयरों
को
जैसे
की
बोर्ड,
माउस,
एल0सी0डी0, प्रिन्टर आदि को एक साथ जोडें
रखता
है।
मदरबोर्ड
से
ही
प्रोसेसर,
हार्डडिस्क, रैम भी जुडी रहती है तथा यू0एस0बी0, या पेनडाइव
लगाने
के
लिये
के
भी
यू0एस0बी0 पाइन्ट मदरबोर्ड
बोर्ड
में
दिये
गये
होते
हैं।
साथ
ही
मदरबोर्ड
से
ही
हमें
ग्राफिक,
तथा
साउण्ड का आनन्द भी मिलता
है।
सेन्ट्रल प्रासेसिग यूनिट (प्रोसेसर):-
यह कम्प्यूटर
का
सबसे
अधिक
महत्वपूर्ण
भाग
है।
इसमें
एक
माक्रोप्रोसर चिप रहता है जो कम्प्यूटर के लिए सोचने के सभी काम करता है और यूजर के आदेशेा तथा निर्देशों के अनुसार प्रोग्राम का संचालन करता है। एक तरह से यह कम्प्यूटर का दिमाग ही होता है। इसी वजह से यह काफी गरम भी होता है और इसको ठंडा रखने के लिेये इसके साथ एक बडा सा फैन भी लगाया जाता है जिसे सी0पी0यू0 फैन कहते हैं। आजकल प्रोसेसर पिन लैस आते हैं लेकिन आज से 5 साल पहले पिन वाले प्रोसेसर आते थे। इसनें सबसे प्रचलित पैन्टीयम 4 प्रोसेसर रहें हैं। आज के समय में इन्टेल कम्पनी के डयूलकोर और आई03 या आई07 प्रोसेसर काफी प्रचलित हैं। इन प्रोसेसरों से कम्प्यूटर की क्षमता काफी बढ जाती है।
डी0वी0डी0 राइटर :-
यह वह भाग है जो डी0वी0डी0-राइटर डिस्क में संचित डाटा को पढता है तथा डी0वी0डी0 को राइट भी करता है जब तक डी0वी0डी राइटर नहीं आया था तक डी0वी0डी रोम चलते थे और उससे पहले सी0डी0 राइटर या सी0डी0 रोम होते थे और उससे भी पहले फ्लोपी डिस्क ड्राइव होती थी जिसमें केवल 3;4 एम0बी0 डाटा ही स्टोर किया जा सकता था। आजकल ब्लूरे डिस्क क भी अविष्कार हो चुका है जिसमें लगभग 40 जी0बी0 तक डाटा स्टोर किया जा सकता है। इसके लिये कम्प्यूटर में ब्लूरे राइटर को लगाना आवश्यक होगा।
रैम –
रैम की फुलफार्म रैन्डम एक्सिस मैमरी होती है, रैम कम्प्यूटर को वर्किग स्पेस प्रदान करती यह एक प्रकार की अस्थाई मैमोरी होती है, इसमें कोई भी डाटा स्टोर नहीं होता है। जब हम कोई एप्लीकेशन कम्प्यूटर में चलाते हैं, तो वह चलते समय रैम का प्रयोग करती है। कम्प्यूटर में कम रैम होने की वजह से कभी कभी हैंग होने की समस्या आती है तथा कुछ ऐप्लीकेशन को पर्याप्त रैम नहीं मिलती है तो वह कम्प्यूटर में नहीं चलते है। रैम कई प्रकार की आती है, जैसे DDR, DDR1, DDR2 तथा DDR3 आजकल के प्रचलन में डी0डी0आर03 रैम है। रैम के बीच के कट को देखकर रैमों को पहचाना जा सकता है।
पावर सप्लाई :-
कम्प्यूटर के सभी भागों को उनकी क्षमता के अनुसार पावर प्रदान करने का कार्य पावर सप्लाई करती है। इसको भी ठंडा रखने के लिये इसमें फैन लगा होता है। इसमें से मदरबोर्ड, हार्डडिस्क, डी0वी0डी0राइटर को उचित सप्लाई देने हेतु अलग अलग प्रकार के वायर दे रखे होते है। इसका मेन स्वीच सी0पी0यू0 के पीछे दिया होता है जहॉ पावर केबिल के माध्यम से कम्प्यूटर को पावर दी जाती है।
क्या होता है बायोस (BIOS) ?
जब आप कंप्यूटर स्टार्ट करते हैं और जो पहली स्क्रीन आपको दिखाई देती है वही बायोस (BIOS) है, बायोस (BIOS) की Full
Form है बेसिक इनपुट आउटपुट सिस्टम (Basic Input Output
System), यह आपके मदरबोर्ड के साथ जुुडा एक सॉफ्टवेयर है जो पीसी ऑन होने पर अपने आप शुरू हो जाता है, BIOS कंप्यूटर के ऑन होने पर रैम, प्रोसेसर, की-बोर्ड, माउस, हार्ड ड्राइव की पहचान कर उन्हें कन्फिगर (Configure) करता है।
Where is the
BIOS Stored ? बायोस (BIOS) यहॉ होता हैै?
मदरबोर्ड में (CMOS) यानि Complementary metal
oxide semiconductor नाम की चिप में BIOS की सेटिंग्स स्टोर रहती हैं, जब आप यह Settings बदलते हैं तो मदरबोर्ड में लगा सेल इन Settings को सुरक्षित रखता है, इन Settings में आपके कंप्यूटर का Time and date भी शामिल है, यदि कभी बायोस (BIOS) की Settings गडबड हो जायें तो बैटरी निकाल के फिर सें लगा देने से सेटिंग डिफ़ॉल्ट (Default settings) हो जाती हैं।
·
कंप्यूटर क्या है - What is Computer
What is the
function of the BIOS? बायोस (BIOS) का क्या होता है
बायोस (BIOS) मुख्यरूप से आपके कंप्यूटर के ऑपरेटिंग सिस्टम
(Operating System) को
बूट कराने का काम करता है, जब कंप्यूटर ऑन होता है, BIOS यह आपके द्वारा की गयी CMOS सेटअप कि जाँच करता है और यह तय करता है कि किस डिवाइस से सिस्टम बूट कराया जा सकता है
कंप्यूटर बूटिंग क्या होती है - What is a computer
booting
जब आप कंप्यूटर स्टार्ट करते हैं तो सीपीयू (CPU) और बायोस (BIOS) मिलकर कंप्यूटर को स्कैन करते हैं, जिसमें कंप्यूटर यह पता करता है कि मदरबोर्ड से कौन-कौन से उपकरण जुडें है और ठीक प्रकार से काम कर रहे हैं या नहीं, इसमें रैम, डिस्पले, हार्डडिस्क आदि की जॉच होती है, यह प्रक्रिया पोस्ट (Post) कहलाती है।
जब कंप्यूटर पोस्ट (Post) की प्रकिया कंम्पलीट कर लेता है तो बायोस
(BIOS) बूूटिंग डिवाइस को सर्च करता हैै, वह हर बूट डिवाइस में बूटिंग फाइल को सर्च करता है, सबसे पहले First Boot Device, फिर Second Boot Device इसके बाद Third Boot Device और अगर इसमें भी बूटिंग फाइल न मिले तो Boot Other
Device, बायोस
(BIOS) को जिसमें भी पहले बूटिंग फाइल (Booting File) मिल जाती है। वह उसी से कंप्यूटर को बूट करा देता है और कंप्यूटर में ऑपरेटिंग सिस्टम (Operating System) की लोडिंग शुरू हो जाती है।
जो लोग सीडी या डीवीडी से विंडोज इंस्टॉल करते हैं वह First Boot Device के तौर पर CDROM को सलेक्ट करते हैं, लेकिन हर किसी सीडी से बायोस
(BIOS) कंप्यूटर को बूट नहीं करा सकता है इसके लिये सीडी या डीवीडी का बूटेबल (Bootable CD or
DVD) होना जरूरी है, बूटेबल (Bootable) होने का मतलब है कि उसमें बूटिंग फाइल (Booting File) होना चाहिये जिससे बायोस
(BIOS) उसे पढ सके।
अगर आपके कंप्यूटर में कोई भी (Bootable Media) नहीं है तो आपको Insert Boot Media
Disk का Error दिखाई देगा, Error आपको तब भी दिखाई देे सकता है जब आपको कंप्यूटर हार्डडिस्क से बूट न ले रहा हो।
Type of Booting - बूटिंग के प्रकार
कंप्यूटर
में
बूटिंग
दो
प्रकार
की
होती
है
कोल्ड
बूटिंग
(Cold booting) और वार्म बूटिंग (Warm Booting) -
What
is Cold booting कोल्ड बूटिंग क्या होती है -
जब आप सीपीयू के कंप्यूटर (computer) का पावर बटन (Power button) या स्टार्ट बटन (Start button) को प्रेस कर कंप्यूटर को स्टार्ट करते हैं तो इसे कोल्ड बूटिंग (Cold booting) कहा जाता है।
What
is Warm Booting वार्म बूटिंग क्या होती है -
कंप्यूटर के हैंग होने की स्थिति में की-बोर्ड के द्वारा Alt+Ctrl+Del दबाकर या फिर रिस्टार्ट बटन का उपयोग कंप्यूटर को दोबारा बूट कराने की प्रकिया वार्म बूटिंग कहलाती (Warm Booting) या रीबूट (reboot) भी कहते हैं
प्रिंटर एक आउटपुट डिवाइस होती है, इसका प्रयोग कंप्यूटर के डेटा की हार्डकॉपी बनाने के लिये किया जाता है। की-बोर्ड, माउस के बाद प्रिंटर ही एक ऐसा डिवाइस है, जिसका इस्तेमाल सबसे अधिक किया जाता है। ऑफिस, घ्ारों और व्यावसायिक प्रतिष्ठानों पर प्रिंटर का प्रयोग चिञ, ऑफिस डाक्यूमेंट प्रिंट करने के लिये किया जाता है। साधारण तौर पर प्रिंटर कंप्यूटर के साथ एक डाटा केबल से जुडा रहता है अौर किसी भी एप्लीकेशन से Ctrl+P कमांड देने पर वह आपको प्रिंट दे देता है। लेकिन अाजतक प्रिंटर के साथ नई तकनीकों का प्रयोग किया जाता है। जिसमें वायरलैस प्रिंटिग मुख्य है। इसमें प्रिंटर को वाई-फाई और क्लाउड से जोडा जाता है। जिससे दूर बैठे ही आप प्रिंटर को कमाण्ड दे सकते हैं। क्लाउड तकनीक से आप मोबाइल से भी प्रिंटर को कमाण्ड दे सकते हैं अौर प्रिंट निकाल सकते हैं।
प्रिंटरों के प्रकार -
·
डॉट मैट्रिक्स - इस प्रिंटर का प्रयोग आजकल बहुत कम हाेता है। लेकिन अभ्ाी कुछ दुकानों और खासतौर पर बैंक में यह प्रिंटर प्रयोग में लाया जा रहा है।
·
लेजर प्रिंटर- यह प्रिंटर प्रोफेशनल रूप से सबसे ज्यादा प्रयोग किया जाने वाला प्रिंटर है। इसमें ब्लैक एण्ड व्हाईट और रंगीन दोनों प्रकार के प्रिंटर आते हैं।
·
इंकजेट/डेस्कजेट - यह प्रिंटर सस्ता होने के कारण घरों में ज्यादातर प्रयोग किया जाता है। इसमें गीले रंगों का प्रयोग किया जाता है।
·
थर्मल प्रिंटर - मॉल्स, रेस्टोरेंट आदि में बिलिंग के लिये इस प्रिंटर का प्रयोग किया जाता है। इसमें इंक की आवश्यकता नहीं पड़ती।
·
प्लॉटर्स प्रिंटर- बड़े साइज फ्लेक्स प्रिंट करने के लिये इस प्रिंटर का प्रयोग होता है।
·
फोटो प्रिंटर्स- कलर लैब में फोटो प्रिंट करने के लिये इन प्रिंटर का प्रयोग किया जाता है।
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